प्रकृति के नियमों को क्यों तोड़ा श्रीकृष्ण ने, कौन थे वो 8 योद्धा जिन्हे श्रीकृष्ण ने किया था ज़िंदा: आखिर कौन थे वह आठ लोग जिनके मरने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया. आखिर क्यों तोड़ा था भगवान श्री कृष्ण ने प्रकृति का नियम? भगवान श्री कृष्ण ने पृथ्वी पर अवतरित होने के उपरांत बहुत सी लीलाएं दिखाई चाहे वह अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाना हो या फिर कंस, नरकासुर और एकलव्य जैसे महाबलियों का वध करना हो उन्होंने कई सारे ऐसे अद्भुत कार्य किए थे जिससे आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक था. ऐसा ही एक कार्य था मृत लोगों को पुनः जीवन दान देना. श्री कृष्ण ने एक नहीं बल्कि आठ लोगों को अलग-अलग अफसर पर जीवित किया था तो आखिर कौन थे वह आठ लोग और क्यों भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें फिर से जीवित किया?
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प्रकृति के नियमों को तोड़ना: श्रीकृष्ण ने क्यों लाए 8 योद्धाओं को वापस Breaking the Laws of Nature: Why Krishna Brought Back 8 Warriors
महाभारत सभा पर्व अध्याय 21 के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी ने अपने गुरु सांदीपनी से अपनी शिक्षा पूर्ण कर ली तो उस समय उन दोनों भाइयों को अस्त्र विद्या में निपुण देकर सांदीपनी ने उन्हें गुरु दक्षिणा देने की आज्ञा दी. सांदीपनी जी बोले मेरा पुत्र समुद्र में नहा रहा था और उस समय एक असुर उसे पड़कर भीतर लेकर चला गया और उसके शरीर को खा गया. अगर तुम मेरे उस मरे हुए पुत्र को जीवित करके यहां ला दोगे तो मैं इसे अपनी गुरु दक्षिणा मानूंगा. उनकी मांग बेहद कठिन थी, तीनों लोकों में दूसरे किसी भी पुरुष के लिए इस कार्य को करना संभव था फिर भी भगवान श्री कृष्ण ने उसे पूर्ण रूप से करने की प्रतिज्ञा ले ली जिसने संदीपनी के पुत्र को मारा था उस असुर को दोनों भाइयों ने युद्ध करके समुद्र में ही मार गिराया और फिर भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्रसाद से सांदीपनी का पुत्र जो दीर्घकाल में यमलोक में जा चुका था उन्हें पूर्व शरीर धारण करके जिंदा कर दिया.
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यह आदित्य और अत्यंत अद्भुत कार्य देखकर सभी प्राणियों को बड़ा आश्चर्य हुआ तत्पश्चात गुरु पुत्र को लेकर श्री कृष्ण ने गुरु सांदीपनी जी को सौंप दिया. उस पुत्र को देखकर संदीपनी के नगर के लोग यह मान गए कि भगवान श्री कृष्ण के द्वारा ऐसा कार्य संपन्न हुआ है जो अन्य लोगों के लिए असंभव और औचित्य था. भगवान नारायण के सिवा दूसरा कोई भी पुरुष इस कार्य को नहीं कर सकता था और सब यह जान चुके थे कि भगवान श्री कृष्णा कोई और नहीं बल्कि स्वयं नारायण के ही अवतार है.
श्रीकृष्ण की लीला: 8 योद्धाओं को पुनर्जीवित करने की अद्भुत कहानी Krishna’s Leela: The Miraculous Story of Resurrecting 8 Warriors
भागवत पुराण दशम स्कंध अध्याय 85 के अनुसार देवकी ये सुनकर अत्यंत आश्चर्यचकित थी कि भगवान श्री कृष्णा और बलराम जी उनके गुरु के मरे हुए पुत्र को यमलोक से वापस लियाये है. फिर उन्हें अपने पुत्रों की याद सताने लगी थी जिन्हें कंस ने मार डाला था. उनके स्मरण से देवकी जी का हृदय अतुल हो गया था उन्होंने बड़े ही भावविभूक होकर ईश्वर से श्री कृष्णा और बलराम जी को संबोधित करके कहा..
श्री कृष्णा तुम योगेश्वर के भी ईश्वर हो मैं जानती हूं कि तुम आदि पुरुष नारायण हो, तुम दोनों आज मेरी अभिलाषा पूर्ण करो, जो मैं चाहती हूं तुम्हें वह करना ही होगा, तुम दोनों मेरे उन मरे हुए पुत्रों को वापस जीवित करो जिन्हें कंस ने स्वयं मार डाला था, तुम्हें उन्हें वापस जिंदा करना ही होगा ताकि मैं उन्हें जी भर के देख लू और उनका पालन करू”
माता देवकी जी के बात सुनकर भगवान श्री कृष्णा और बलराम जी दोनों ने योग माया का आश्चर्य लेकर सतलुज में प्रवेश किया जब दैत्य राज बाली ने देखा कि जगत की आत्मा मेरे परम स्वामी भगवान श्री कृष्णा और बलराम जी सुतल लोक में पधारे हैं उन्होंने छत पर आसान से उठकर भगवान के चरणों में प्रणाम किया और दैत्य राजाबली बोले..
प्रभु आप हमें अजय देकर निष्पाप बनाया..
भगवान श्री कृष्णा कहा है.. दैत्य राजा स्वयंभू मन्वंतर में प्रजापति मैरिज की पत्नी के गर्भ से 6 पुत्र उत्पन्न हुए थे वह सभी देवता थे वह यह सब देखकर हंसने लगे
ब्रह्मा जी अपनी ही पुत्री से समागम करने के लिए उदित है और उनके इसी परिहार स्वरूप अपराध के कारण उन्हें ब्रह्मा जी ने श्राप दे दिया और वह असुर योनि में हिरण्यकश्यप के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुए.
माया ने उन्हें वहां से लाकर देवकी जी के गर्भ में रख दिया और उनको उत्पन्न होते ही कंस ने मार डाला. दैत्यराज माता देवकी जी अपने उन पुत्रों के लिए अत्यंत शोक आतुर हो रही है वह उन्हें वापस जाती है और वह तुम्हारे पास है. हम यहां से ले जाने आए हैं.
राजा बलि ने कहा… “हे प्रभु आप ही सृष्टि के पालनहार है आप जैसा चाहोगे वैसा ही होगा”
इसके बाद भगवान श्री कृष्णा और बलराम जी बालकों को लेकर फिर से द्वारकापुरी लौट आए और उसके बाद माता देवकी को उनके पुत्रों को सौंप दिया इसके बाद वह सभी श्राप से मुक्त हुए और माता देवकी से मिलकर आनंदपूर्वक अपने लोक में चले गए. उन छह बच्चों के नाम समर, उदित, परिष्वंग, पतंग, सूदरवर्थ और ग्रहणी.
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वहीं जब कुरुक्षेत्र में पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध चल रहा था उस समय अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा गर्भवती थी. भीम द्वारा की गई दुर्योधन की दुर्दशा देखकर अश्वत्थामा पहले से कहीं अधिक क्रोधित हो गया था और उसने रात में ही पांडव सेना के शिविर पर आक्रमण कर बहुत से योद्धाओं का वध कर डाला था, इसका प्रतिशोध देने के लिए पांडवों ने अश्वत्थामा का पीछा किया अपने को घीरा हुआ जानकर अश्वत्थामा ने पांडवों पर ब्रह्मास्त्र चला दिया और उसकी काट के लिए अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र चला दिया. तब वेदव्यास जी और नारद मुनि के कहने पर अर्जुन ने अपना अस्त्र वापस ले लिया परंतु अश्वत्थामा उसे अस्त्र को वापस लेने की विद्या नहीं जानता था और उसने वह अस्त्र कहीं और चलने की बजाय उत्तरा के गर्भ की ओर मोड़ दिया. तब उस समय भगवान श्री कृष्ण ने Drona पुत्र पर क्रोधित होते हुए अपने सुदर्शन चक्र की सहायता से उसकी मड़ी निकाल ली और उसे शक्तिहीन कर दिया और फिर श्री कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को पुनर्जीवित किया और उसका नाम Parikshit रखा गया.
तो ये थे वो 8 लोग जिन्हें श्रीकृष्ण ने मरने के बाद भी जिंदा किया. आपका क्या विचार है इस बारे में कमेन्ट में जरूर बताए.
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