महाभारत का रहस्य: कर्ण के कवच और कुंडल का क्या हुआ? हमारा पवित्र हिंदू धार्मिक ग्रंथ महाभारत आज भी अनेकों रहस्यों को खुद में समेटे हुए हैं जिनमें से कई रहस्यों की गुत्थी आज तक कोई नहीं सुलझा पाया हालांकि यह भी सत्य है कि इस युग में एक से बढ़कर एक योद्धाओं ने जन्म लिया था. यहां तक की श्री हरि के अवतार भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत लीलाओं का वर्णन भी महाभारत में मिलता है. ऐसे में महाभारत न केवल एक ग्रंथ है बल्कि यह ऐसे युग की कथा है जो की आधुनिक मनुष्य को कर्तव्यों और धर्म पालन का बोध कराती है. इस युग में भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, कृपाचार्य, बलराम, अभिमन्यु, अश्वत्थामा और कर्ण जैसे महारथी हुए जिनमें से आज हम कर्ण जैसे दानवीर योद्धा के जीवन के संदर्भ में चर्चा करेंगे और यह भी जानेंगे कि कर्ण के वह चमत्कारी कवच और कुंडल कहां है जिसने कर्ण जैसे महारथी को संपूर्ण संसार में एक दानवीर के रूप में विख्यात कर दिया. अधिक समय न लेते हुए प्रस्तुति आरंभ करते हैं.
Must Read: प्रकृति के नियमों को क्यों तोड़ा श्रीकृष्ण ने, कौन थे वो 8 योद्धा जिन्हे श्रीकृष्ण ने किया पुनर्जीवित
महाभारत का रहस्य: कर्ण के कवच और कुंडल का क्या हुआ? Mystery of Mahabharata: What Happened to Karna’s Kavach and Kundal?
ऐसे में जब महाभारत का युद्ध हुआ तब भगवान श्री कृष्णा यह जानते थे कि जब तक कर्ण के पास यह कवच और कुंडल है तब तक अर्जुन के प्राणों पर यह संकट बना रहेगा इसलिए उन्होंने इंद्रदेव को एक ब्राह्मण का वेश धारण करके कर्ण के पास जाने को कहा. उधर कर्ण जब सूर्य उपासना के पश्चात राजमहल की ओर लौट ही रहे थे कि तभी इंद्रदेव एक ब्राह्मण का वेश बनाकर उनके समक्ष आए हालांकि कर्ण को इस बात का पूर्वाभास था कि यह ब्राह्मण और कोई नहीं बल्कि स्वयं इंद्रदेव है लेकिन कर्ण ने उनके आग्रह करने पर उन्हें अपने कुंडल और कवच दान में दे दिए और इस दान के बदले में कर्ण ने इंद्रदेव से कुछ भी नहीं मांगा. कहते हैं कि तभी से कर्ण एक महान दानवीर कहलाए. इस प्रकार कारण द्वारा देवराज इंद्र को अपने कवच और कुंडल देने के पश्चात वह महाभारत की युद्ध भूमि में अर्जुन के हाथों वीरगति को प्राप्त हो गए.
Must Read: क्या कलयुग के अंत में होगा राजा बलि का कल्कि अवतार मिलन?
कर्ण के कवच और कुंडल का रहस्य: आज कहां हैं वे? The Mystery of Karna’s Kavach and Kundal: Where Are They Today?
जैसा कि आप जानते हैं कि कर्ण माता कुंती के बड़े पुत्र थे परंतु माता कुंती ने भय लाज के उन्हें नदी में विसर्जित कर दिया क्योंकि माता कुंती को भगवान सूर्य के आशीर्वाद से कर्ण नामक पुत्र की प्राप्ति अविवाहित होने के दौरान हुई थी इसके बाद एक अधीरत ने अपनी पत्नी राधा के साथ मिलकर कर्ण का पालन पोषण किया हालांकि कर्ण को जीवन भर लोगों ने सूत पुत्र कहकर संबोधित किया था किंतु उनके पराक्रम और बल की प्रशंसा स्वयं भगवान श्री कृष्णा भी किया करते थे.
Also Read: महाभारत का विवादित श्राप: द्रौपदी और घटोत्कच की कथा
दूसरी ओर कर्ण को भगवान सूर्य के आशीर्वाद से जन्म से ही कवच और कुंडल प्राप्त थे जिनके होते हुए कर्ण को कभी कोई परास्त नहीं कर सकता था तत्पश्चात ही समस्त पांडव भाइयों को यह ज्ञात हुआ था कि कर्ण उनके बड़े भाई है उधर देवराज इंद्र ने कर्ण से उसके कवच और कुंडल छल से प्राप्त किया जिसे वह अपने साथ स्वर्ग ले जाने लगे परंतु छल से प्राप्त की गई वस्तुओं का स्वर्ग में प्रवेश वर्जित था इसलिए वह उन कवच और कुंडल को वापस पृथ्वी पर ही ले आए और उन्होंने उन्हें समुद्र में ले जाकर डाल दिया.
Also Read: रामायण और महाभारत के योद्धाओं की ऊंचाई: क्या वे वास्तव में इतने लंबे थे?
खोए हुए खजाने: कर्ण के कवच और कुंडल की खोज Lost Treasures: The Search for Karna’s Kavach and Kundal
कहते हैं कि देवराज इंद्र ने कर्ण से प्राप्त कुंडल और कवच को उड़ीसा राज्य की पूरी में कोणार्क के निकट छुपाया था जिसकी रक्षा स्वयं सूर्य देव और समुद्र देव कर रहे हैं क्योंकि माना जाता है कि इंद्र को समुद्र में कुंडल और कवच छुपाते चंद्र देवता ने देख लिया था जिन्होंने इनको प्राप्त करने की कोशिश की थी परंतु वह इस कार्य में असफल रहे इसके साथ ही कुछ लोगों का यह भी कहना है कि कर्ण के कवच और कुंडल छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के दंडकारणीय वन में एक गुफा के अंदर सुरक्षित रखे हुए हैं. यहां के स्थानीय लोग भी यह पूर्ण दावा कर रहे हैं कि यह कर्ण के कवच और कुंडल ही हैं.
ऐसे में आज हमने जाना इंद्रदेव ने कर्ण से दान में मिले कुंडल और कवच का क्या किया और यह भी हम जानते ही हैं कि यदि कर्ण ने महाभारत का युद्ध कुंडल और कवच के साथ लड़ा होता तो उन्हें युद्ध भूमि पर कोई परास्त नहीं कर सकता था परंतु किसी ने सच ही कहा है कि हो वही जो राम रचि राखा. आज के लिए केवल इतना ही हम आशा करते हैं कि हमारी आज की प्रस्तुति आपको पसंद आई होगी अपने विचार हम सभी के समक्ष अभिव्यक्त करने के लिए कमेंट करें.
Also Read: माता वैष्णो देवी और भगवान श्री राम की प्रेम कहानी
Must Read: इस महाबली से युद्ध में हार गए थे हनुमान जी, वजह जानकर प्रभु श्रीराम भी हैरान हो गए थे